कैसा था हिटलर का गैस चेंबर, जिसमें लोगों को ऐसे तड़पा-तड़पाकर मारता था तानाशाह?.....

RKRTNकत

Reporter Kadeem Rajput TV News कल तक

June 03, 2025

कैसा था हिटलर का गैस चेंबर, जिसमें लोगों को ऐसे तड़पा-तड़पाकर मारता था तानाशाह?.....

हिटलर के नाजी कमांडर दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सामूहिक हत्या के तरीकों पर प्रयोग कर रहे थे. उन्हें डर था कि लोगों को गोली मारना उनके सैनिकों के लिए बहुत तनावपूर्ण होगा, इसलिए उन्होंने बड़े पैमाने पर हत्याओं के अधिक कुशल तरीकों के रूप में गैस चैंबर का आविष्कार किया.

हिटलर का गैस चैंबर लाखों लोगों को तड़पा-तड़पाकर मारने के लिए आज भी कुख्यात है. इतिहास में एक साथ इतने बड़े पैमाने पर लाखों लोगों को दर्दनाक मौत देने का दूसरा उदाहरण नहीं है. चलिए जानते हैं कैसा था हिटलर का ये गैस चैंबर?

जर्मनी का दुर्दांत तानाशाह एडोल्फ हिटलर अपने क्रूर व्यवहार और अत्याचार के लिए जाना जाता था. उसने लाखों लोगों की बड़े ही बेरहमी से हत्या करवा दी थी. इतनी बड़ी संख्या में लोगों को मारने के लिए उसने कई तरह के खतरनाक सिस्टम बनवाए थे. इनमें से एक था गैस चैंबर- जिसमें एक साथ हजारों लोगों को जहरीली गैस देकर तड़पा-तड़पा कर मा दिया जाता था.

इस वजह से बनाना पड़ा गैस चैंबर

नाजी सैनिकों ने बड़े पैमाने पर दुश्मन देश के नागरिकों और यदूदियों को दर्दनाक मौत देने के लिए इस तरह के तरीके का इजाद किया था. जर्मन सैनिकों के समूह पूर्वी यूरोप में नए जीते गए इलाकों में नागरिकों का नरसंहार करने के लिए निकल पड़े. नाजी कमांडर सामूहिक हत्या के तरीकों पर प्रयोग कर रहे थे. उन्हें डर था कि लोगों को गोली मारना उनके सैनिकों के लिए बहुत तनावपूर्ण होगा, इसलिए उन्होंने बड़े पैमाने पर हत्याओं के अधिक कुशल तरीकों का आविष्कार किया.इसमें से एक था जहरीली गैस देकर लोगों को बड़े पैमाने पर मारना.

तब पहली बार जहरीली गैस से मारने का हुआ प्रयोग

1939 में पोलैंड पर जर्मन आक्रमण और कब्जे के बाद, नाज़ियों ने यहूदियों को पोलैंड के कुछ हिस्सों में निर्वासित करना शुरू कर दिया. वहां उन्होंने उन्हें बाकी आबादी से अलग करने के लिए यहूदी बस्ती बनाई. 1941 में, यूएसएसआर पर जर्मन आक्रमण के दौरान, नाज़ियों ने अपने विनाश अभियान की शुरुआत की. नाज़ियों ने अपने आक्रमण को जर्मनी और यहूदी लोगों, साथ ही स्लाविक आबादी और रोमा के बीच एक जाति युद्ध के रूप में पेश किया.

1941 में शुरू हुआ था गैस चैंबर का इस्तेमाल

1941 की सर्दियों तक, नाज़ियों ने ऑशविट्ज़ में अपना पहला गैस चैंबर और श्मशान बना लिया था. ऑशविट्ज मूल रूप से दक्षिणी पोलैंड में स्थित पोलिश सेना का बैरक था. बाद में इसी ऑश्विट्ज के नाम से पर गैस चैंबर के नाम रखे जाने लगे. नाजी सैनिक पूरे यूरोप से लोगों को बिना खिड़कियों, शौचालयों, सीटों या भोजन के मवेशी गाड़ियों में ठूंस कर गैस चैंबर (ऑशविट्ज़)लेकर आते थे.

ऐसे आया आइडिया

1939 की शुरुआत में पोलैंड में मानसिक रूप से विकलांग लोगों को मारने के लिए प्रायोगिक गैस वैन का इस्तेमाल किया गया था. इसमें जहरीले धुएं को एक सीलबंद डिब्बे में पंप किया गया था, ताकि अंदर मौजूद लोगों का दम घुट जाए. इसके बाद जहरीली गैस से लोगों को मारने के इस तरीके से 1941 के अंत तक, उन्होंने 500,000 लोगों को मार डाला था, और 1945 तक उन्होंने लगभग दो मिलियन लोगों की हत्या कर दी थी - जिनमें से 1.3 मिलियन यहूदी थे.

मरने के बाद शवों को जलाकर खेतों में फेंक दिए जाते थे राख

मारे गए लोगों के शवों को दूसरे कैटेगरी के कैदी या यहूदी जिन्हें काम के लिए रखा गया था, उनसे ढुलवाकर फायर चैंबर तक लाया जाता था. शवों को फायर चैंबर में डालने से पहले उनके कृत्रिम अंग, चश्मा, बाल और दांत निकाल लिए जाते थे. फिर शवों को फायर चैंबर में जला दिया जाता था. फिर राख को दफना दिया जाता था या खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता था.

ऐसे बनाए गए थे विशाल गैस चैंबर

सितंबर 1941 में गैस से मारे जाने वाले पहले लोग पोलिश और सोवियत कैदियों का एक समूह था. अगले महीने एक नए शिविर या गैस चैंबर, जिसका नाम ऑशविट्ज- II बिरकेनौ था. उस पर काम शुरू हुआ. यह विशाल गैस चैंबरों का स्थल बन गया, जहां नवंबर 1944 से पहले लाखों लोगों की हत्या की गई थी और श्मशान घाट जहां उनके शवों को जलाया गया था.बिरकेनौ छह नाजी कंस्ट्रेशन कैंप में सबसे बड़ा शिविर था. बेलजेक, सोबिबोर और ट्रेबलिंका में तीन अन्य शिविर भी 1942 में बनकर तैयार हो गए थे. इन कैंपों में बड़े-बड़े गैस चैंबर बनाए गए थे.

जहरीली गैस छोड़कर चैंबर को 20 मिनट तक कर देते थे बंद

वहां उन्हें अलग-अलग श्रेणियों में बांट दिया जाता था, जो काम कर सकते थे और जिन्हें तुरंत मार दिया जाना था. जिन्हें तुरंत मार दिया जाता था, उन्हें बिना कपड़ों के विशाल सीलबंद गैस चैंबर में भेज दिया जाता था. वहां विशाल कक्षों में शक्तिशाली जाइक्लोन-बी गैस के छर्रे गिराते थे और लोगों के मरने का इंतजार किया जाता था. इसमें लगभग 20 मिनट लगते थे. मोटी दीवारें भी अंदर दम घुटने वाले लोगों की चीखें नहीं छिपा पाती थीं.

Published on June 03, 2025 by Reporter Kadeem Rajput TV News कल तक